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लेखनी प्रतियोगिता -05-Sep-2022 गुरु शिष्य परंपरा



शीर्षक= गुरु - शिष्य परंपरा 


गुरु, अध्यापक, टीचर, मेंटर भिन्न भिन्न नाम से जानी जाती है ये मशहूर हस्ती, जिसका काम होता है अपने शिष्यों को अंधकार से निकाल कर आध्यात्मिकता की रोशनी कि और लेकर जाना, उसे एक ऐसा मार्ग दिखाना जो भले ही तकलीफों से भरा होता है लेकिन उन तकलीफों के बाद जो ज्ञान, विद्या वो सीखता है और सीख कर अपने आप को इस काबिल बनाता है की अपने साथ साथ और लोगो भी अंधकार से निकाल कर रोशनी की ओर ला सके ।

गुरु जिसका धर्म अपने शिष्यों को आध्यात्मिकता कि और ले जाना और शिष्यों का भी पहला धर्म अपने गुरु का आदर करना, उसके द्वारा दिए गए कामों को पूर्ण निष्ठा और ईमानदारी से करना क्यूंकि एक गुरु ही होता है जो आपको बेहतर बनाने का हर संभव प्रयास करता है और चाहता है की उसका शिष्य उससे भी बड़ा विद्वान बने। बाकी सब तो एक दुसरे को गिराने में ही लगे रहते है।


गुरु और शिष्य का रिश्ता आज से नही जन्म जनमंत्रो से है। गुरु के बिना जीवन अंधेरी गुफा में भटकने के समान है जहां चाह कर भी आप अपने लिए कोई रास्ता तलाश नही सकते जब मशाल नुमा गुरु आपके साथ ना हो।

कहते है गुरु एक ऐसी जलने वाली मोमबत्ती है जो खुद तो जलती ही है लेकिन खुद जल कर अपने शिष्यों को जीने के तरीके सिखाती है ताकि उन राहों पर चल कर उसके शिष्य जीवन का अर्थ समझ सके यू ही जानवरों की तरह खा पी कर अपना जीवन अंधकार मय ना बनाए।

हमारा भारत देश जहां सदा से ही गुरु को माता पिता के दर्जे से भी बड़ा माना गया है क्योंकि माता पिता तो सिर्फ अपनी संतान को इस दुनिया में लाते है लेकिन गुरु उसे इस दुनिया में रहने के काबिल बनाते है।


अब तो जमाना बदल गया है, पढ़ाई के हजारों साधन है लेकिन फिर भी देखने को मिलता है की बच्चे फिर भी नही सीख पाते है क्योंकि आज कल के बच्चो को सब कुछ थाली में तैयार भोजन की तरह सब कुछ परोसा हुआ मिल रहा है ।

उन्हें नही पता की पहले लोग विद्या हासिल करने के लिए अपना घर, अपना गांव सब कुछ छोड़ देते थे उनके अंदर एक चाह होती थी किसी गुरु के पास जाकर कुछ सीखने की ओर ये चाह ही उसे अपने लक्ष्य तक ले जाती थी। उस गुरु से विद्या हासिल करने के लिए वो ना जाने कोन कोन से प्रयत्न करते थे।


एकलव्य एक धनुर्धर, धनुष विद्या सीखने की चाह रखने वाला एक शिष्य जिसने अपनी विद्या अपने गुरू द्रोणाचार्य की पत्थर की मूर्ति तराश कर उसके सामने पूर्ण की और फिर एक दिन अपने गुरू की परंपरा का पालन करते हुए अपने हाथ का अंगूठा गुरू दक्षिणा के रूप में दे दिया। और साबित कर दिया की गुरू की आज्ञा और उसका पालन करना शिष्य का पहला धर्म है।


लेकिन आज कल इस बदलते दौर में जहां हर चीज बदल रही है वहा गुरू और शिष्य के बीच का रिश्ता भी बदल गया है।

पहले राजा महाराजा के बच्चे स्वयं चल कर गुरू की कुटिया में जाकर वहा भिक्षा मांग कर, मोसम का अच्छा बुरा हर पहलू देख कर वहा रह कर सादा खाना खा कर विद्या सीख कर अपने राज पाट में वापस आते।

लेकिन आज कल तो लोग ज़रा सा पैसा आने पर अपने बच्चो को अध्यापक के घर नही भेजते है बल्कि अध्यापक को ही घर बुलाकर पढ़ा कर जाने का कहते है क्या भला कभी कुआ प्यासे के पास जाता है हमेशा प्यासा कुएं के पास जाता है तब उसे एहसास भी होता है की कितनी मुश्किलों से मेने इस कुएं को ढूंढ कर अपनी प्यास बुझाई है इसलिए इसका एक एक कतरा मेरे लिए अमृत समान है जिसे वो अपनी हथेली से गिरने भी नही देगा।

और अभी यही कुआ उसके पास खुद चल कर आ जाता तो उसे उस पानी की कोई कद्र नही होती क्यूंकि उसे पाने में उसने कोई संघर्ष नही किया है।

यही हाल आज कल के बच्चों का उन्हें अपने टीचर की कोई कद्र ही नही जो चल कर उनके पास आ रहा है उन्हें विद्या जेसी अनमोल चीज सिखाने बल्कि वो बच्चे और उनके माता पिता गर्व से कह देते है आ रहे है तो क्या महीने के १००० रूपए भी तो ले रहे है एक बच्चे को पढ़ाने के जबकि वो १००० रूपए आपके बच्चे को अंधकार से आध्यात्मिकता की रोशनी की ओर ले जाने के लिए बहुत थोड़े है।


जिस समय हम पढ़ते थे या हमारे भाई बहन पढ़ते थे उस समय पढ़ाई सिर्फ एक पढ़ाई थी लोगो को अंधकार से निकाल कर आध्यात्मिकता की रोशनी की ओर ले जाने वाला माध्यम, इंसान और जानवरों में विभेद करने वाला अस्त्र लेकिन अब पढ़ाई सिर्फ और सिर्फ कारोबार बन गई है शायद यही वजह है एकलव्य जैसे छात्र जो कभी गुरू दक्षिणा में अपना अंगूठा देने से पहले एक बार भी नही सोचते थे वो आज अपने गुरुओं का मान सम्मान करना तक भूल गए है।


उसी के साथ साथ गुरू भी उन्ही जैसे बनते जा रहे है और जो गुरू शिष्य की परंपरा इस देश में सदियों से चली आ रही थी अब लगता है विलुप्त होने की कगार पर है क्योंकि जिस तरह से शिक्षा का कारोबार किया जा रहा है गुरू अपनी शिक्षा दे नही रहे है बल्कि सौदा कर रहे है और शिष्य उस विद्या को सीख नही बल्कि पैसे के दम पर खरीद रहे है दोनों ओर शिक्षा का व्यापार चल रहा है। गुरु अपनी शिक्षा बेच रहे है, स्कूल वाले उन्हें खरीद रहे है माता पिता बच्चों की पढ़ाई के नाम पर ठगे जा रहे है और बच्चे अपने गुरुओं का अपमान कर रहे है।
जिसकी झलक न्यूज चैनल में आए दिन दिख जाती है की कभी किसी अध्यापक ने पैसे लेकर बच्चे के भविष्य का सौदा कर दिया उसे फर्जी एग्जाम में पास करके तो कभी सुनने को मिलता है छात्र को पीटने पर उसके परिजनों ओर दोस्तो ने मिलकर अध्यापक को पीट दिया।

कम नंबर देने पर छात्र ने अध्यापक का कत्ल कर दिया।


हमारा समय सही था जब अध्यापक हमे मारते और हम घर जाकर शिकायत भी करते तो घर वाले हमे और मारते की जरूर तुमने ही कुछ किया होगा वरना अध्यापक के सिर पर सींग थोड़ी है जो तुम्हे मारेगा।

और हम चाह कर भी अपनी पिटाई का दुखड़ा घर जाकर नही रोते क्योंकि घर पर और पिटते।


लेकिन कुछ भी कहो आज हम जो कुछ भी है, जहां कही भी है उन्ही अध्यापको के द्वारा हमे सिखाए गए ज्ञान की बदौलत है जो इस मतलबी दुनिया में अब तक हमारा अस्तित्व बरकरार है, ये सब उन्ही के आशीर्वाद, दुआओं और हल्की फुल्की डांट डपट का असर है क्योंकि जो पत्थर छेनी हथौड़े की मार से डर गया उससे कभी मूरत नही बन सकती। और यही हाल आज कल के बच्चो का है वो अपने गुरु की जरा सी मार और डांट  बर्दाश्त नही कर सकते तो वो जिंदगी के इस मुश्किल सफर को केसे तय करेंगे जहां जिंदगी रोज एक नया चाटा गाल पर मारती है और इंसान को उसे सहना पड़ता है कभी अपने खातिर तो कभी अपनो के खातिर।


मैं आज जो कुछ लेखनी पर लिख पा रहा हू या अपनी जिंदगी में जो कुछ भी कर पा रहा हू उसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ मेरे गुरुओं को जाता है जिन्होंने मुझे इस काबिल बनाया की मैं आज ये लिख पा रहा हू और मेरे पता पिता भी जिन्होंने मेहनत करके मुझे विद्या जेसी अनमोल चीज सीखने का अवसर प्रदान कराया।
बस यही कहना चाहूंगा की अपने गुरु की इज्जत करे और गुरु शिष्य की परंपरा जो सदियों से चली आ रही है उसे इस आधुनिकता के भेट ना चढ़ाए इल्म हासिल करो चाहे उसके लिए तुम्हे चीन ही क्यू ना जाना पड़े और अपने गुरु की मार और डांट को उनका आशीर्वाद समझ कर अपनी जिंदगी में भर ले क्यूंकि पिता के बाद गुरु ही है जो चाहता है उसका शिष्य जिंदगी में उससे ज्यादा तरक्की करे अगर यकीन ना हो तो अपने नजदीकी अस्पताल जाकर देख लेना वहा ऊंची ऊंची पोस्ट पर बैठे वही डॉक्टर मिलेंगे जिनके गुरु आज भी या तो किसी स्कूल में पढ़ा रहे होंगे नही तो रिटायरमेंट के बाद घर में बैठे होंगे लेकिन उनके पढ़ाए शिष्य आज देश के कोने कोने में होंगे और नाम कमा रहे होंगे।


आप सब ही को मेरी तरफ से टीचर डे की बहुत बहुत बधाई ।

I have a special place for my all teacher in my heart

प्रतियोगिता हेतु लिखा लेख 



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16 Comments

Mohammed urooj khan

07-Sep-2022 03:01 PM

आप सब ही का तह दिल से शुक्रिया

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Behtarin lekhan

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Sadhna mishra

07-Sep-2022 01:46 PM

Lajawab 👌

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